रतलाम 26 अप्रैल। किसी के द्वार पर यदि भिखारी आता है, तो वह उसपर उपकार ही करता है। गाय, कुत्ता और समस्त प्रकार जीव यही उपकार करते है। इनके आने से जीवन में करूणा के भाव जागृत होते है। करूणा के भावों का आत्मा के निज भाव जागृत करने में सबसे बडा उपकार होता है। करूणा के भाव को कमजोर नहीं समझे, वे हमे केवल ज्ञान अर्थात परमात्म तत्व की प्राप्ति तक ले जा सकते है।
यह बात श्रमण संघीय प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनिजी मसा ने कही। नोलाईपुरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक में प्रवचन देते हुए उन्होंने मैं कितना कृतज्ञ हूं विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रवर्तकश्री ने कहा कि मनुष्य जीवन की विडंबना है कि हमे लगता है कि किसी की मदद कर हम उस पर उपकार कर रहे है, जबकि उपकार तो मदद लेने वाला करता है। दुनिया के सभी जीव और अजीव साधन उपकारी है, क्योंकि किसी ना किसी रूप में वे हमारी मदद ही करते है। हमारा जीवन बिना उपकार के नहीं चल सकता।
प्रवर्तकश्री ने कहा कि किसी को कुछ देने में करूणा के जो भाव जागृत होते है, वे त्याग की बुद्धि जगाने, वस्तु के प्रति ममत्व कम करने और परिग्रह कम करने के साथ-साथ हमे पुण्य के रास्ते पर ले जाने में सहायक होते है। इन भावों से व्यक्ति मन, वचन, काया सभी के पुण्य करता है । उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन में अनंत जीवों का उपकार होता है। उनके बिना हम जी नहीं सकते। एक-दूसरे का सहयोग सबकों लेना ही पडता है। इसलिए अकेले कुछ कर लेने के भ्रम में नहीं रहना चाहिए। उपकारी का उपकार मानने का भाव रखेंगे, तभी आत्मा का विकास होगा और हम परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य प्राप्त कर पाएंगे।
प्रवचन में पंडित रत्न श्री महेन्द्र मुनिजी मसा, श्री दर्शनमुनिजी मसा, श्री अभिनंदन मुनि जी मसा और महासती श्री चंदनबाला जी मसा, श्री रमणीक कुंवर रंजन जी मसा, श्री कल्पनाश्रीजी मसा, श्री चंदना जी मसा, श्री लाभोदया जी मसा, श्री जिज्ञासा जी मसा आदि ठाणा उपस्थित रहे। संचालन सौरभ मूणत ने किया। अंत में प्रभावना का वितरण श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल ट्रस्ट द्वारा किया गया।